Sunday, August 2, 2009

Date of Swadhyaya: 08/02/2009
Attendees:
Summary Prepared by:
Chapter No: 2
Sutra No: 40 to 44
Recorded lecture: http://library.jain.org/1.Pravachan/shrish/TatvarthSutraClass/
Summary:


सूत्र 40 = अप्रतिघाती
अप्रतिघाती = यहाँ पर अप्रतिघाती का मतलब किसीके रोकने से न रुके यह लेना है.
तेजस और कार्मन शरीर अप्रतिघाती है, परन्तु वैक्रियक और आहारक शरीर अप्रतिघाती नहीं है.
वैक्रियक शरीर की limitation = वे त्रसनादी में १६ स्वर्ग से ऊपर और ३ नरक से नीचे नहीं जा सकते.
आहारक शरीर की limitation = वे २.५ द्वीप से आगे नहीं जा सकते.

सूत्र 41 = अनादिसम्बंधे च
तेजस और कार्मन शरीर को "बीज-वृक्ष न्याय" नियम से अनादी कहा है. यहाँ "च" शब्द opposite लेना है, इसलिए एक अपेक्षा से अनादी से और दूसरी अपेक्षा से सादी है, परन्तु वैसा सम्बन्ध वैक्रियक, औदरिक और आहारक में नहीं होता, हर जन्म में जिव दूसरा शरीर धारण करता है, इसलिए वह संभंध अनित्य है. तेजस और कार्मन शरीर जिव के साथ सदा ही रहते है इसलिए अनादी है और पिछले बंधे कर्म की निर्जरा होती है और नए कर्म का बांध प्रतिसमय होता है इसलिए वह सादि है .

सूत्र 42 = सर्वश्य
तेजस और कार्मन शरीर सभी जिव को होता है , अरिहंत भगवान् को भी पाया जाता है, परन्तु सिद्ध भगवान के एक भी शरीर नहीं होता.

सूत्र 43 = तदादीनी भाज्यानी युग्पदेकस्मिन्नाचातुर्भ्य:
जीव के २ से ४ तक के शरीर एकसाथ एकसमय पर होते है,
२ शरीर = तेजस और कार्मन = विग्रह गति में,
३ शरीर = तेजस,कार्मन और आहारक = लगभग सभी जीव में होता है,
३ शरीर = तेजस,कार्मन और वैक्रियक= देवो और तिर्यंच में होता है,
४ शरीर = तेजस,कार्मन,औदरिक, आहारक = रुद्धिधारी मुनियों को होता है.
In the book, sutra no. 43, 3rd last line Shirishji will confirm.( छठे गुनस्थानवर्ती....... औदरिक, वैक्रियक, तैजस, कार्मन ये चार शरीर होते है)

सूत्र 44 = निरुपभोगमन्त्यम
उपभोग = इन्द्रिय आदि के द्वारा शब्द वगैरह के ग्रहण करने को उपभोग कहते है.
योग = मन, वचन,काया की क्रिया से आत्मा के प्रदेशो में कम्पन.
कार्मन शरीर उपभोग रहित है, इसका आशय यह है, विग्रह गति में कार्मन शरीर से योग होता है, परन्तु कार्मन शरीर विग्रह गति में शब्द आदि को ग्रहण नही करता है, क्योकि तब भावेद्रिय ही होती है, द्रव्येंद्रिया नहीं होती, सो कार्मन शरीर को निरुपभोग कहा है. तेजस शरीर योग में निम्मित नहीं है इसलिए वह तो वैसे ही निरुपभोग है. बाकि के तीन शरीर सोपभोग ही है.